उस बोज़ल आँखों के पीछे ,कुछ राज़ छिपे थे अन्जाने,
उसके भी थे कुछ तो सपने ,उसके भी थे कुछ अफ़साने,
उसके भी थे कुछ तो सपने ,उसके भी थे कुछ अफ़साने,
सब ने भी तो ये देखा था,फिर भी है सब खामोश खड़े,
अब धृतराष्ट्र बन बैठे है,तब नारे गाये थे क्यों बड़े
वो आँखे अब कुछ समज गई, दो आहें भर कर सहम गई
सावन की वो बौछारों मैं एक बिजली जैसे चमक गई
नत मस्तक अब तक था वो सर, उन्नत रहेने से डरता था
मन भी था उसका तंग बड़ा , बड़े जोरों से ये कहता था
अल्लाह के भेजे बंदे हो , धरती को अब ना जहन्नम करो
हम मांगते है कुछ और कहाँ , गुस्ताखी जिसे तुम समजे हो
इस भूखे पेट की लाचारी को, शौख हमारा समजे हो ?
मासूम ही है कुछ ख्वाहिशे , बड़े भोले है मेरे सपने
नहीं जाना था ये दुनिया में, बड़े कम ही होते है अपने
शिक्षा से वंचित कर हम को , स्वर्णिम भारत बनाओगे ?
बस अपने अंदर झाँख के देखो , खुद ही उत्तर पाओगे !!
हम को भी हक़ है पढने का , पंछी शायद हम कच्चे है
अपने भारत का स्वर्ण भविष्य ,कोई और नहीं हम बच्चे है !! "
5 comments:
Aptly portrayed the feelings of a small poor child! Nice one!
@shubhra Thanks ma'am !!
so touching .. well expressed !
@nimue Thanks !! :D
such a poignant piece...heart rending
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