उस बोज़ल आँखों के पीछे ,कुछ राज़ छिपे थे अन्जाने,
उसके भी थे कुछ तो सपने ,उसके भी थे कुछ अफ़साने,
उसके भी थे कुछ तो सपने ,उसके भी थे कुछ अफ़साने,
सब ने भी तो ये देखा था,फिर भी है सब खामोश खड़े,
अब धृतराष्ट्र बन बैठे है,तब नारे गाये थे क्यों बड़े
वो आँखे अब कुछ समज गई, दो आहें भर कर सहम गई
सावन की वो बौछारों मैं एक बिजली जैसे चमक गई
नत मस्तक अब तक था वो सर, उन्नत रहेने से डरता था
मन भी था उसका तंग बड़ा , बड़े जोरों से ये कहता था